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Showing posts from May, 2020

"ज्योतिष विज्ञान सत्य या कल्पना"

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             "ज्योतिष विज्ञान सत्य या कल्पना" हम इस संसार में विश्व चेतना के एक कण के रूप में आते हैं। इस कण में पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार जीवन का सारा ढांचा बना हुआ होता है। सारी सूचना कि किस गर्भ को चुनना है, और कब चुनना है, योनि कौन सी होगी, जीवन कैसा होगा सारी जानकारी उस कण में मौजूद रहती है। इसी जानकारी के अनुसार वह चेतना अपना  गर्भ चुनती है। इस प्रकार एक नये जीवन की उत्पत्ति होती है। इस धरती के सभी जीवों के चारों ओर विभिन्न रंगों के प्रकाश की उर्जा होती है, जिसे हम 'औरा' कहते हैं, विज्ञान ने भी इस तथ्य को स्वीकारा है कि  सभी जीवों के चारों ओर औरा नामक एक उर्जा होती है। इस 'औरा' की उर्जा पर नौं ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है। और इसका प्रभाव हमारे जीवन पर भी पडता है। इसी ऊर्जा के जीवन में पडने वाले प्रभाव के विस्त्रत अध्ययन को ही 'ज्योतिष शास्त्र' कहा गया है। ज्योतिष शास्र् के अध्ययन से पता चलता है कि यह नौ ग्रहों की शक्ति हमारे जन्म से पूर्व ही हमारे जीवन को नियंत्रित करने लगती है। चेतना की औरा के हिसाब से ही चेतना निर्णय लेती है

एक सिद्ध योगी के अनंत ज्ञान का रहस्य।

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एक सिद्ध योगी के अनंत ज्ञान का रहस्य-- इंसान के बोध की क्षमता केवल शब्दों को समझने की  क्षमता से कहीं अधिक परे है, लेकिन चूंकि आपके मन को ट्रेनिंग मिली है कि कही हुयी चीजों को न केवल सुनने की बल्कि याद करने की और उसे लिख लेने की। आपको जो बात काम की लगती है, उसे लिखना जरुरी है, लेकिन मनुष्य बुद्धि का बोध इससे कहीं परे है। इस बोध को बढ़ाना जरुरी है क्योंकि आप उसी को जानते हैं जो आपके बोध में होता है, बाकी  सब कहानी और कल्पना है। जो आपके बोध में है और आपने जिसे अनुभव किया है आप केवल उसी को जानते  हैं, बाकी सब खोखली कल्पना मात्र है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कहानी कितनी शानदार है, लेकिन चूंकि यह केवल एक कहानी है जो आपके जीवन में कोई बदलाव नहीं लायेगी। अगर इसे आपके जीवन में बदलाव लाना है, तो इसमें अनुभव का एक आयाम होना नितांत आवश्यक है। वो तभी होगा जब आपके पास ऐसा बोध होगा। हम स्वामी विवेकानन्द जी का उदाहरण लेते हैं --- स्वामी विवेकानन्द पहले योगी थे जो 1893ई. में अमेरिका आये थे। वे यूरोप भी गये और अमेरिका से वापस लौटते समय वो एक जर्मन फिलोस्फर के घर मेहम

मूलाधार चक्र की शक्ति।

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मूलाधार चक्र की शक्ति-- परमेश्वर ने हमारे शरीर की रचना करते समय कुल सात चक्रों को हमारे शरीर में स्थापित किया है, ये स्रष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र माने जाते हैं। इनमें सबसे पहला चक्र मूलाधार चक्र है। परमात्मा ने हर जीव को सुप्त मूलाधार चक्र की ऊर्जायें जन्म से ही प्रदान की हैं। एक साधारण स्वस्थ मनुष्य में कुंडलिनी ऊर्जा इसी मूलाधार चक्र ( जो रीढ़ की हड्डी में गुदा और शिश्न के ठीक बीच स्थित होता है) के भीतर साँप की तीन कुंडली मारे सुप्त पड़ी रहती है। मूलाधार चक्र ही जीवन की समस्त कामनाओं, वासनाओं, भौतिक सुखों, भावनाओं व मानसिक स्थायित्व का केंद्र है। यही चक्र सभी नकारात्मक आयामों (काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद,मात्सर्य) का केंद्र बिंन्दु भी है। मूलाधार चक्र की ऊर्जाओं को कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है। कामवासना की सर्वोच्च अवस्था में अर्थात 'स्खलन' की स्थिति में इस कुंडली मारे सुप्त ऊर्जा में थोड़ी हलचल होती है, यदि इस समय आप ध्यान दें तो आनन्द की तरंगों का केन्द्र आपके गुदा और शिश्न के बीच के भाग से ही आता है। यदि इस क्षण आप किसी फुटबाल या गेंद पर बैठ जाते हैं तो आप देख

आस्तिक और नास्तिक में कौन बेहतर।

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आस्तिक और नास्तिक में कौन बेहतर है। भगवान के अस्तित्व पर हमेशा से संदेह वना रहा है, कोई यह स्पष्ट रुप से  नहीं कह सकता कि भगवान हैं या नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि आध्यात्मिक जगत में आपका विश्वास ही आपका सबकुछ होता है। इसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति बीच वालों की होती है जिनके मन में संदेह रहता है कि भगवान हैं या नहीं हैं। तभी तो कहा गया है कि एक सच्चा नास्तिक ही सच्चा आस्तिक होता है। और सच्चा आस्तिक तो आस्तिक है ही। इस बारे में आपको एक घटना को बताता हूँ-- एक बार गोतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ सभा कर रहे थे, तभी एक भगवा कपड़ा पहने एक व्यक्ति पेड़ के पीछे खड़ा होकर उन्हें देख रहा था। यह व्यक्ति बहुत ही धार्मिक स्वभाव का था, इसने अपना पुर्ण जीवन भगवान को समर्पित कर दिया था। उसने स्वयं कई मन्दिरों का निर्माण करवाया था, किन्तु मन में भय था कि अगर भगवान हैं ही नहीं तब तो उसका पूरा जीवन ही व्यर्थ हो गया। इस बात की पुष्टि के लिये उसने आत्मज्ञानी बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध क्या भगवान होते हैं। बुद्ध थोड़ी देर तक उसे देखे फिर मुस्कुरा कर उत्तर दिया, नहीं भगवान जैसी कोई चीज नहीं होती।

कुंडलिनी शक्ति जागरण क्यों है प्राणघाती।

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कुंडलिनी शक्ति जागरण क्यों है प्राणघाती। दोस्तों हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हम स्वयं को जानते ही नहीं। जब हम मन्दिर, गुरुद्वारा,चर्च या मस्जिद जाते हैं तो हम भगवान को सदैव अपने से अलग और श्रेष्ठ मानकर उनकी आराधना करते हैं, हम कभी इस बात पर गौर ही नहीं करते कि भगवान हमसे अलग नहीं है, हमारा उसके साथ सदियों से अटूट रिश्ता रहा है, यह रिश्ता उतना गहरा है जितना हमारे सांसारिक रिश्ते भी नहीं हैं। हम अनंत काल से जबसे स्रष्टि का स्रजन हुआ है उसके अंश हैं और वो ही हमारा सच्चा मालिक। अब आप उसे चाहे जिस रुप में पूजें पिता, माता, गुरु, या सर्वस्व मानकर, आप 100 प्रतिशत उसके ही अंश हैं अर्थात आप भी भगवान हैं, क्योंकि पानी की बूँद पानी होती है और तेल की बूँद तेल ही होती है। किन्तु आप में वो योग्यता और ज्ञान नहीं है लेकिन ईश्वरीय शक्ति आप के भीतर ही वास करती है। जैसे एक पास या एक फेल बालक में केवल मेहनत का ही अन्तर होता है लेकिन बालक तो दोनों ही हैं न, किसी ने समय का सदुपयोग करके अपने को सफल बना लिया तो कोई असफल ही रह गया, बस। केवल इतना ही फर्क एक साधारण और एक महामानव में होता है, ईश्वर

साधो सहज समाधि भली।

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                साधो सहज समाधि भली वर्तमान समय में सारा विश्व इस भागदौड भरी जिंदगी में परेशान है। आराम करने का वक्त ही नहीं है। तनाव इतना ज्यादा है कि अगर दो क्षण के लिये आँख लग भी जाती है तो सपने में काम की ही याद आती है, इसलिये नींद की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है और जागने के बाद फिर से काम। काम-काम और बस काम। क्या कोई ऐसी टेक्निक है जिसे करके हम अपनी इस छोटी सी नींद को बेहतर बना सकते हैं, जिससे कम से कम शरीर के साथ-साथ मन को भी आराम मिले और हम अनेक मानसिक बीमारियों जैसे तनाव, अवसाद इन सबसे बच सकें और एक संतुलित जीवन जी सकें। हाँ एक तरीका है, लेकिन इसके लिये आपको अपने जीवन का केवल आधा घंटा प्रतिदिन देना होगा। केवल थोडे से प्रयास से आप देखेंगे कि आपके  अन्दर एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा है, और इस ऊर्जा का प्रभाव आपको दिन भर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिलेगा। वो तरीका है बस एक छोटा सा ध्यान। नींद अचेत ध्यान है, और ध्यान सचेत नींद। यह पूरा संसार विश्व शक्ति से जुडा हुआ है। यह शक्ति ही किसी भी जीव का अस्तित्व है, जब हम सोते हैं तो हमें गहरी खामोशी में थोडी सी विश्व शक

क्या कुंडलिनी जागरण नास्तिकता का प्रतीक है।

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क्या कुंडली जागरण नास्तिकता का प्रतीक है- कुंडलिनी शक्ति को परमात्मा ने मनुष्य के सवसे नीचे के मूलाधार चक्र में प्रदान किया है, जोकि काम-वासना, मानसिक रूप से स्थायित्व, भावनाएं व इंद्रिय सुख से संबंधित है। जब मनुष्य ध्यान द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने का प्रयास करता है तो सर्वप्रथम मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। इस स्थिति में यह खतरा बना होता है कि मनुष्य कामी हो जाए और इन्द्रिय सुख प्राप्ति में ही अपना जीवन व्यतीत कर दे। इसीलिए कुझ विद्वान यह मानते हैं कि कुंडलिनी शक्ति को साधने वाले व्यक्ति आस्तिक और सात्विक नहीं रह जाता, वह परमात्मा की बराबरी करने लगता है व केवल अपने एक चक्र मूलाधार के जागरण से ही मिली शक्तियों का दुरुपयोग करके नास्तिक बन जाता है। यह बात एक हद तक सत्य है। इसीलिये ही तो परमात्मा ने इस शक्ति को सबसे निचले मूलाधार चक्र में स्थापित किया है ताकि यदि कोई मनुष्य कुंडलिनी जगरण की यात्रा शुरु करता है तो पहले उसका यह चक्र जो सभी तरह के विकारो से संबंधित है, इसका जागरण पहले हो ताकि आगे बढने से पहले ही जो कमजोर साधक हैं वो अपने मार्ग से भ्रष्ट हो जायें। कु

सूक्ष्म जगत से खेल्वाड़, अक्सर पड़ जाता है भारी।

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सूक्ष्म जगत से खेलवाड, अक्सर पड जाता है भारी सूक्ष्म जगत के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं होती क्योंकि यह  एक अद्रश्य जगत है। भौतिक जगत अर्थात वो संसार जिसमें हम जीते हैं, हमें दिखाई देता है, इसकी घटनाओं को हम विज्ञान की सहायता से समझ सकते हैं, और यह विज्ञान के नियमों का  पालन भी करता है, लेकिन सूक्ष्म जगत विज्ञान से परे है। भले ही यह हमें दिखाई न दे पर फिर भी हम इसे महसूस करते हैं। सभी धर्मों में अनुभवी व्यक्तियों ने इसको महसूस किया है, इसीलिये यह जगत बिल्कुल सत्य है, फिर भले ही विज्ञान इसे निराधार ठहराये। अगर बात विज्ञान की ही करें तो विज्ञान का सबसे बडा नियम तो यही है कि कोई ऊर्जा न कभी उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है, वह केवल अपना रूप बदल सकती है, यही तथ्य इस जगत की अस्तित्व का प्रमाण है।  हाँ मैं वही संसार की बात कर रहा हूँ जिसे भूतों का संसार कहते हैं। चाहे कोई भी धर्म हो या कोई भी देशॉ, सभी मानव समुदाय में इस संसार के असंत्रप्त प्राणियों ने अपनी मौजूदगी का प्रमाण  समय-समय पर दिया है, और साधारण मनुष्यों के जीवन में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है। म

Say yes to "Vege" and forbid "Nonvege"

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                    Say yes to "Vege" and forbid "Nonvege"       N onvege veg se behtar hai ya vege Nonvege se, Is mudde per kai bar buddhijiviyon me vad-vivad hota rha hai. Kaun kisase behtar hai ye janne se pahle aaiye hum dono ki bhojan ke rup me bhumikaon ko jante hain. Ek example ke taur per India  ko lete hain. India ki mitti upjau hai, yhan Himalayi v Prayadwipiya Nadiya hain, Jo kheti ki drishti se bahut anukul hai. Isliye fertile mitti v sichai ke paryapt sadhan hone ke karan is desh me prachin kal se hi anaj ki achchi paidawar hoti aa rahi hai. Isliye yha ke logo ko bhojan ke liye pashuon per nirbhar nahi rahna pda hai. Isiliye yhan Gautam Buddh  jaise santo ne kaha hai ki pashuhatya pap hai, un per daya karo. Liken agar hum U.A.E. jaise registani khadi deshon ki bat karen to wahan ret ke siva kuch nahi hai. wahan pani bhi bahut mushkil se milta hai. Isliye wahan Nonvege ke alawa koi bhojan ka vikalp nahi hai. Agar hum jinda rahenge tab t