"ज्योतिष विज्ञान सत्य या कल्पना"

            "ज्योतिष विज्ञान सत्य या कल्पना"

हम इस संसार में विश्व चेतना के एक कण के रूप में आते हैं। इस कण में पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार जीवन का सारा ढांचा बना हुआ होता है। सारी सूचना कि किस गर्भ को चुनना है, और कब चुनना है, योनि कौन सी होगी, जीवन कैसा होगा सारी जानकारी उस कण में मौजूद रहती है। इसी जानकारी के अनुसार वह चेतना अपना  गर्भ चुनती है। इस प्रकार एक नये जीवन की उत्पत्ति होती है। इस धरती के सभी जीवों के चारों ओर विभिन्न रंगों के प्रकाश की उर्जा होती है, जिसे हम 'औरा' कहते हैं, विज्ञान ने भी इस तथ्य को स्वीकारा है कि  सभी जीवों के चारों ओर औरा नामक एक उर्जा होती है। इस 'औरा' की उर्जा पर नौं ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है। और इसका प्रभाव हमारे जीवन पर भी पडता है। इसी ऊर्जा के जीवन में पडने वाले प्रभाव के विस्त्रत अध्ययन को ही 'ज्योतिष शास्त्र' कहा गया है।
ज्योतिष शास्र् के अध्ययन से पता चलता है कि यह नौ ग्रहों की शक्ति हमारे जन्म से पूर्व ही हमारे जीवन को नियंत्रित करने लगती है। चेतना की औरा के हिसाब से ही चेतना निर्णय लेती है कि किस घडी, किस नक्षत्र में, तथा किस योनि को जीवन के लिए चुनना है। इस प्रकार पूर्व कर्मों की शक्ति से एक नया जीवन जन्म लेता है।
जीवन उर्जा की छाप शिशु के शरीर के कई हिस्सों में देखी जा सकती है। इसीलिए प्राचीनकाल के विद्वान लोग नवजात शिशु के ललाट को देखकर ही बता देते थे कि शिशु सामान्य है या विलक्षण। ये सब कमाल ज्योतिष शास्र की ही देन है।
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ज्योतिष शास्त्र को भारत में आये कई विदेशियों ने अपनाया व इसकी दीक्षा ली, और अपने देश में इसे प्रसिद्ध किया। पर पता नहीं क्यों हम भारतवासी अपनी ही विद्या का सम्मान नहीं करते, जिसे हमारे महान पूर्वजों ने हजारों साल पहले बिना किसी एडवांस उपकरण के केवल अपने अथक प्रयासों से हमारे भविष्य की पीढियों का मार्गदर्शन  करने के लिए बनाया था।
वास्तव में उनकी कोई गलती नहीं है, क्योंकि यह विज्ञान है ही इतना जटिल कि इसकी सटीक भविष्यवाणी करना सबके बस की बात नहीं होती है। क्योंकि कुंडली के अन्दर 12 भाव, 12 भावों के अलग-अलग स्वामि, 12 राशियां, 27 नक्षत्र और उनके स्वामि। अगर इन सबको मिला दिया जाए तो इतनी विशाल गणना बनती है कि हर कौई के समझ की बात नहीं होती।
ज्यादातर हम उन तथाकथित ज्योतिषों के चक्कर में पड जाते हैं जो 2-3 किताबें पढकर भविष्य बताने लगते हैं, जबकि विश्वविद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र की  बकायदा पढायी होती है और फिर किसी अनुभवी के संरक्षण में कई कुंडलियों का अध्ययन करके कोई व्यक्ति सही से कुंडलियों की व्याख्या कर सकता है। यही कारण है कि ज्यादातर बुद्धिजीवी इस विज्ञान पर विश्वास नहीं करते, हो सकता है कि उनकी किसी शुभ ग्रह की महादशा चल रही हो, किन्तु यही लोग अपने बुरे समय आने पर तमाम उपाय करते नजर आते हैं। कोई सूर्य को जल दे रहा है तो कोई गाय की सेवा कर रहा है, तो कोई पीपल व्रक्ष की उपासना करके शनि देव को साधने में लगा  है।
अतः हमें अपने महान पूर्वजों की कठोर श्रम से कमाई गई पँजी का सम्मान करना चाहिये, और सडकछाप ठगों से पर्याप्त दूरी बनाकर किसी विद्वान ज्योतिष की सहायता लेनी चाहिये, तथा अपने जीवन के सभी अवसरों का लाभ उठाकर एक सफल जीवन जीना चाहिये।

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