मूलाधार चक्र की शक्ति-- परमेश्वर ने हमारे शरीर की रचना करते समय कुल सात चक्रों को हमारे शरीर में स्थापित किया है, ये स्रष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र माने जाते हैं। इनमें सबसे पहला चक्र मूलाधार चक्र है। परमात्मा ने हर जीव को सुप्त मूलाधार चक्र की ऊर्जायें जन्म से ही प्रदान की हैं। एक साधारण स्वस्थ मनुष्य में कुंडलिनी ऊर्जा इसी मूलाधार चक्र ( जो रीढ़ की हड्डी में गुदा और शिश्न के ठीक बीच स्थित होता है) के भीतर साँप की तीन कुंडली मारे सुप्त पड़ी रहती है। मूलाधार चक्र ही जीवन की समस्त कामनाओं, वासनाओं, भौतिक सुखों, भावनाओं व मानसिक स्थायित्व का केंद्र है। यही चक्र सभी नकारात्मक आयामों (काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद,मात्सर्य) का केंद्र बिंन्दु भी है। मूलाधार चक्र की ऊर्जाओं को कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है। कामवासना की सर्वोच्च अवस्था में अर्थात 'स्खलन' की स्थिति में इस कुंडली मारे सुप्त ऊर्जा में थोड़ी हलचल होती है, यदि इस समय आप ध्यान दें तो आनन्द की तरंगों का केन्द्र आपके गुदा और शिश्न के बीच के भाग से ही आता है। यदि इस क्षण आप किसी फुटबाल या गेंद पर बैठ जाते हैं तो आप देख
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