कुंडलिनी शक्ति जागरण क्यों है प्राणघाती।

कुंडलिनी शक्ति जागरण क्यों है प्राणघाती।

दोस्तों हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हम स्वयं को जानते ही नहीं। जब हम मन्दिर, गुरुद्वारा,चर्च या मस्जिद जाते हैं तो हम भगवान को सदैव अपने से अलग और श्रेष्ठ मानकर उनकी आराधना करते हैं, हम कभी इस बात पर गौर ही नहीं करते कि भगवान हमसे अलग नहीं है, हमारा उसके साथ सदियों से अटूट रिश्ता रहा है, यह रिश्ता उतना गहरा है जितना हमारे सांसारिक रिश्ते भी नहीं हैं।
हम अनंत काल से जबसे स्रष्टि का स्रजन हुआ है उसके अंश हैं और वो ही हमारा सच्चा मालिक। अब आप उसे चाहे जिस रुप में पूजें पिता, माता, गुरु, या सर्वस्व मानकर, आप 100 प्रतिशत उसके ही अंश हैं अर्थात आप भी भगवान हैं, क्योंकि पानी की बूँद पानी होती है और तेल की बूँद तेल ही होती है। किन्तु आप में वो योग्यता और ज्ञान नहीं है लेकिन ईश्वरीय शक्ति आप के भीतर ही वास करती है। जैसे एक पास या एक फेल बालक में केवल मेहनत का ही अन्तर होता है लेकिन बालक तो दोनों ही हैं न, किसी ने समय का सदुपयोग करके अपने को सफल बना लिया तो कोई असफल ही रह गया, बस। केवल इतना ही फर्क एक साधारण और एक महामानव में होता है, ईश्वर ने दोनों की ही रचना करते समय कोई भेदभाव नहीं किया फर्क केवल इतना है कि किसी ने खुद को उस शक्ति के योग्य बना लिया तो कोई उस शक्ति से अनजान है।

ईश्वरीय सत्ता के समानान्तर आपको खड़ी करने वाली उस शक्ति का नाम कुंडलिनी उर्जा है। जिसके पूर्ण जागरण से कोई भी आम मनुष्य ईश्वर के समान ही शक्तिशाली व गुणवान बन सकता है। सच में ईश्वर कितना महान है, इसीलिये हमारे धर्मग्रन्थों में अहमं ब्रह्मास्मि शब्द का प्रयोग किया गया है।
लेकिन वर्तमान में इस शक्ति को ब्रांड बनाकर उसका दुष्प्रचार किया जा रहा है। मैं सैकड़ों ऐसे संस्थानों का नाम उंगलियों में गिना सकता हूँ जो शक्तिपात के माध्यम से किसी की भी कुंडलिनी शक्ति को जगाने का दावा करते हैं। ये सरासर झूठ व ठगी है, क्योंकि परमात्मा की स्रष्टि में यह शक्ति परम स्वतंत्र सत्ता के रुप में कार्य करती है। इसे तो केवल और केवल साधक बनकर अपनी साधना से सिद्ध किया जा सकता है। इस शक्ति का जागरण न तो किसी वरदान द्वारा किया जा सकता है और न ही शक्तिपात द्वारा। ये संभव ही नहीं है। कुंडलिनी शक्ति स्वयं अपने साधक की अत्यंत कठिन परीक्षा लेती है और परीक्षा में सफल न होने पर वह साधक का त्याग कर देती है। किन्तु जो लोग भ्रमवश इसे जगाने के शार्टकट का प्रयोग करते हैं, उन्हें इसका भयंकर परिणाम भुगतना होता है। लोग या तो अपना मानसिक संतुलन खो देते हैें या उनकी म्रत्यु हो जाती है।
यह एक कटु सत्य है कि बिना उचित मार्गदर्शन के कुण्डली जागरण आपके जीवन को भयंकर संकट में डाल सकता है। जिस प्रकार किसी परीक्षा से पहले, आप पाठ्य पुस्तकों का गहराई से अध्ययन करके परीक्षा के लिये तैयार होते हैं, उसी प्रकार इस शक्ति साधना के आरम्भ के पूर्व आप मानसिक और शारिरिक रुप से स्वयं को तैयार करें, क्योंकि बाद में आपको अवसर नहीं मिलेगा।
इसे ऐसे समझते हैं- आपने अपने आस-पास बहुत सारे इलेक्ट्राँनिक अप्लायंस देखे होंगे। ये उपकरण प्रायः 220 वोल्ट की बिजली से चलते हैं यदि अचानक आप इन उपकरणों में 440 वोल्ट की बिजली का प्रवाह कर दें, तो क्या होगा, ये उपकरण एक विस्फोट के साथ नष्ट हो जायेंगे, तारों में आग लग जायेगी। बस यही अवस्था कुण्डलिनी उर्जा के साथ भी जुड़ी हुयी है। अब मान लीजिए आपका शरीर 220 वोल्ट वाली दिव्य आत्मा नामक उर्जा से चलता है ओर अचानक आप उसके भीतर 440 वोल्ट वाली कुण्डलिनी नामक ऊर्जा को प्रवाहित कर देंगे तो क्या होगा, आत्मा सुप्त पड़ जायेगी, शरीर छोड़कर भाग खड़ी होगी या आपको किसी घातक बीमारी का शिकार बना देगी।

इसलिये इस दिव्य शक्ति का जागरण किसी अनुभवी गुरु जिसकी कुंण्डलिनी पहले से जाग्रत हो की सूक्ष्म देखरेख में करना चाहिए। इसके पूर्व आप स्वयं को यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार. धारणा, योग, ध्यान और समाधि द्वारा शारिरिक और मानसिक दोनों मोर्चों पर तैयार करे तब ही यह साधना आरंभ करें। यदि आपकी लगन और समर्पण में ईमानदारी होगी तो आप निश्चय ही अपनी साधना में सफल होंगे।
धन्यवाद......

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