आस्तिक और नास्तिक में कौन बेहतर।

आस्तिक और नास्तिक में कौन बेहतर है।

भगवान के अस्तित्व पर हमेशा से संदेह वना रहा है, कोई यह स्पष्ट रुप से  नहीं कह सकता कि भगवान हैं या नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि आध्यात्मिक जगत में आपका विश्वास ही आपका सबकुछ होता है। इसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति बीच वालों की होती है जिनके मन में संदेह रहता है कि भगवान हैं या नहीं हैं। तभी तो कहा गया है कि एक सच्चा नास्तिक ही सच्चा आस्तिक होता है। और सच्चा आस्तिक तो आस्तिक है ही।

इस बारे में आपको एक घटना को बताता हूँ--
एक बार गोतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ सभा कर रहे थे, तभी एक भगवा कपड़ा पहने एक व्यक्ति पेड़ के पीछे खड़ा होकर उन्हें देख रहा था। यह व्यक्ति बहुत ही धार्मिक स्वभाव का था, इसने अपना पुर्ण जीवन भगवान को समर्पित कर दिया था। उसने स्वयं कई मन्दिरों का निर्माण करवाया था, किन्तु मन में भय था कि अगर भगवान हैं ही नहीं तब तो उसका पूरा जीवन ही व्यर्थ हो गया।

इस बात की पुष्टि के लिये उसने आत्मज्ञानी बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध क्या भगवान होते हैं। बुद्ध थोड़ी देर तक उसे देखे फिर मुस्कुरा कर उत्तर दिया, नहीं भगवान जैसी कोई चीज नहीं होती। भरी सभा में यह सुनकर वह काफी दुखी हुआ और रोते हुए वहाँ से चला गया। शिष्यों में काफी खुशी का माहौैल वन गया कि जब भगवान है ही नहीं तो जो चाहे वो करो कोई देखने वाला नहीं है। दिनभर सभा में जश्न का माहौल रहा।

शाम को फिर सभा बैठी। इस बार एक और व्यक्ति उसी पेड़ के पीछे से बुद्ध को देख रहा था। यह व्यक्ति नास्तिक था। वह जगह-जगह जाकर नास्तिकता का प्रचार करता था, उसके तर्क से बड़े-बड़े विद्वान पराजित हो जाते थे। किन्तु मन में संदेह था कि यदि वास्तव में भगवान होंगे तो म्रत्यु के बाद उसे कठोर दंड मिलेगा, उसे तरह-तरह की यातनाएं दी जाएंगी। सामने आत्मज्ञानी बुद्ध बैठे थे. तो उसने भी बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध क्या भगवान होते हैं, बुद्ध पुनः मुस्कुराएं और कहा हाँ भगवान होते हैं। यह सुनते ही सभी शिष्यों में कोहराम मच गया। अभी तो सुबह बुद्ध ने बताया कि भगवान नहीं होते फिर अब वे क्या लीला खेल रहे हैं। बुद्ध का यह उत्तर सुनकर वह नास्तिक व्यक्ति बड़ा दुखी हुआ और रोते हुए वहाँ से चला गया। बुद्ध पुनः ध्यान में लीन हो गयें।

आध्यात्मिक जगत में आपका विश्वास ही आपका सबकुछ होता है। यदि आप आस्तिक बनिये तो दिल से बनिये तथा यदि आप नास्तिक बनिये तो भी दिल से बनिये। चाहे क्षेत्र कोई भी हो सबसे ज्यादा समस्या सदैव बीच वालों को होती है जो इन दोनों स्तितियों के झूलते रहते हैं, रही बात भगवान की तो अगर आप के मन में सच्ची श्रद्धा है तो पत्थर में भी भगवान हैं।


धन्यवाद.....।

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