मूलाधार चक्र की शक्ति।
मूलाधार चक्र की शक्ति--
परमेश्वर ने हमारे शरीर की रचना करते समय कुल सात चक्रों को हमारे शरीर में स्थापित किया है, ये स्रष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र माने जाते हैं। इनमें सबसे पहला चक्र मूलाधार चक्र है। परमात्मा ने हर जीव को सुप्त मूलाधार चक्र की ऊर्जायें जन्म से ही प्रदान की हैं। एक साधारण स्वस्थ मनुष्य में कुंडलिनी ऊर्जा इसी मूलाधार चक्र ( जो रीढ़ की हड्डी में गुदा और शिश्न के ठीक बीच स्थित होता है) के भीतर साँप की तीन कुंडली मारे सुप्त पड़ी रहती है। मूलाधार चक्र ही जीवन की समस्त कामनाओं, वासनाओं, भौतिक सुखों, भावनाओं व मानसिक स्थायित्व का केंद्र है। यही चक्र सभी नकारात्मक आयामों (काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद,मात्सर्य) का केंद्र बिंन्दु भी है।
मूलाधार चक्र की ऊर्जाओं को कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है। कामवासना की सर्वोच्च अवस्था में अर्थात 'स्खलन' की स्थिति में इस कुंडली मारे सुप्त ऊर्जा में थोड़ी हलचल होती है, यदि इस समय आप ध्यान दें तो आनन्द की तरंगों का केन्द्र आपके गुदा और शिश्न के बीच के भाग से ही आता है। यदि इस क्षण आप किसी फुटबाल या गेंद पर बैठ जाते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी कामुकता धीरे-धीरे स्वतः समाप्त हो जाती है।
जब आपका पेट अच्छी तरह से साफ होता है तो भी एक अनन्य सुख की प्राप्ति होती है और यह सुख की तरंगें भी उसी स्थान से उठती हैं। यह कुछ तुच्छ उदाहरण मात्र हैं, बाकी इस चक्र की ऊर्जा तो बड़े-बड़े ज्ञानी और तपस्वी भी नहीं नियंत्रित कर सके हैं। तभी तो देवलोक से अप्सराएँ सदियों से बड़े तपस्वियों का ध्यान भंग करने आती थीं। कितने ही तपस्वी इन अप्सराओं की सुंदरता और कामुकता का शिकार बन जाते थे और उनकी साधना भंग हो जाती थी, तो हम तो फिर भी सामान्य मनुष्य हैं।
कितने आश्चर्य की बात है शरीर के 7 चक्रों में सबसे निम्न दर्जे का आनन्द देने वाले इस मूलाधार चक्र की ऊर्जा भी मनुष्य क्या बड़े-बड़े तपस्वी, संन्यासी यहाँ तक कि देवता भी नहीं झेल पाते और मूर्ख प्राणी बिना इसे साधे ऊपर के चक्रों की जाग्रति करने लगता है, ऐसे में प्राणी पागल नहीं होगा तो क्या होगा।
जब आप मूलाधार चक्र जोकि आनन्द का सबसे निचला स्तर माना जाता है, उसकी ऊर्जा नहीं झेल सकते तो आप उससे अधिक शक्तिशाली चक्रों की ऊर्जा को कैसे झेल पाएंगे। अवश्य आप शक्तिपात या किसी योग्य गुरु के बिना साधना कर उन उच्च चक्रों को जाग्रत कर लोगे लेकिन इसके बाद आप केवल एक जिंदा लाश बनकर रह जाओगे। क्योंकि इन चक्रों के जागरण से जीवन के कई आयाम व उनसे जुड़ी शक्तियाँ भी जाग्रत हो जायेंगी, जिनकी ऊर्जा आपका मस्तिष्क संभाल नहीं सकेगा और आपके दिमाग की वायरिंग जल जायेगी।
दरअसल बिना समुचित अभ्यास के चक्रों के जागरण से आपकी चेतना सामान्य मनुष्य से काफी अधिक बढ़ जाती है, आपसे सूक्ष्म जगत के कई आयाम जुड़ जाते हैं, किन्तु क्या आपका मस्तिष्क इन परिवर्तनों को झेलने के लिये तैयार है। हम मूलाधार चक्र से जुड़ी सामान्य ऊर्जा को नहीं झेल पाते और तनाव,अवसाद व अन्य मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। जब सबसे कम ऊर्जा स्तर वाले चक्र की ऊर्जा आपके दिमाग का कीमा बनाये रहती है तो आप ही सोचिए यदि और चक्रों की ऊर्जा इसमें मिल जायेगी तो क्या होगा। केवल विनाश और कुछ नहीं।
ऐसे साधक आपको कहीं भी देखने को मिल सकते हैं। कोई पेड़ के नीचे बैठकर खुद से ही बात कर रहा है, कभी हँस रहा है तो कभी रो रहा है, किसी-किसी को अन्य लोक की ढ़ोल-म्रदंग की आवाजें सुनाई देती हैं तो कोई यक्ष, गन्धर्व आदि से बातें कर रहा है, इत्यादि। कुल मिलाकर ऐसे विवेकहीन साधकों का मूल स्थान पागलखाना ही होता है।
धन्यवाद....।
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